आकाष से धरा तक

आकाष से धरा तक, ज्योति की बहती धारा
इस नूर को ज़मीं पर, ईष्वर ने है उतारा
वो आसमाँ में चमका, सुंदर-सा एक तारा
दूतों ने गीत गाये, कितना हँसी नज़ारा।

1. ज्योति ने ईष्वर की, इंसाँ का रूप पहना
चरनी में है चमकता, मरियम का आज गहना
मन के अँधेरे घर में, तुम ले लो आज ज्योति
अवसर मिला ना तुमको, फिर ये ना बात कहना
दुनिया से अब मिटाओ युग-युग का ये अँधेरा।

2. कितने अँधेरे मन हैं, कितने गरीब तन हैं
कितनी हीे आत्माएँ, रहती हैं एक घुटन में
सुख-षांति का उन्हें तुम पैगाम ये सुनाओ
येसु बहार लाया, दुनिया के इस चमन में
उसके करम ने फिर से, है प्यार से पुकारा।

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